नई दिल्ली (नेहा): नेपाल एक बार फिर बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर बढ़ रहा है। 2008 में जब राजशाही खत्म हुई थी, तो लोगों को लोकतंत्र से काफी उम्मीदें थीं। लेकिन अब, 17 साल बाद, एक बार फिर सड़कों पर “राजा वापस लाओ” की मांग गूंज रही है। वे राजा ज्ञानेंद्र की वापसी चाहते हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि नेपाल में जनता लोकतंत्र से निराश होकर फिर से राजतंत्र की ओर लौटना चाहती है? दरअसल नेपाल में 2008 के बाद लोकतंत्र की स्थापना तो हुई, लेकिन स्थिरता नहीं आई। इन 17 वर्षों में देश में 14 बार सरकारें बदल चुकी हैं।
हर नई सरकार ने अलग वादे किए, लेकिन आम जनता की समस्याएं जस की तस रहीं — बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई और अराजकता। इस अस्थिरता ने जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या 239 साल पुरानी राजशाही ही बेहतर थी? 28 मार्च 2025 को काठमांडू की सड़कों पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लोगों ने ‘हिंदू राष्ट्र बनाओ’ और ‘राजा वापस लाओ’ जैसे नारे लगाए। इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई, जिसमें 2 लोगों की मौत और कई घायल हो गए। हालात को संभालने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।
प्रदर्शन का नेतृत्व उन संगठनों ने किया जो नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र और राजशाही में बदलने की मांग कर रहे हैं। खास बात यह है कि इनमें बड़ी संख्या में युवा भी शामिल थे। नेपाल कभी दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र हुआ करता था। 2008 में इसे धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया गया। लेकिन पिछले कुछ सालों से जनता के एक हिस्से में यह भावना मजबूत होती जा रही है कि नेपाल की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बचाने के लिए राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वापसी जरूरी है।