नई दिल्ली (नेहा): चीन ने विदेशी टैलेंट को लुभाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. चीन के स्टेट काउंसिल ने ऐलान किया है कि 1 अक्टूबर से नया ‘K वीजा’ लागू होगा, जो अमेरिका के H-1B वीजा जैसा है। इसका मकसद है एशिया और खासकर दक्षिण एशिया से युवाओं को आकर्षित करना, जो साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स (STEM) क्षेत्रों में पढ़ाई या काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, अमेरिका में विदेशी प्रोफेशनल्स के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे हैं, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा पर सालाना 1 लाख डॉलर की भारी फीस लगाने का प्रस्ताव रखा है। ऐसे में कई स्किल्ड प्रोफेशनल्स के लिए चीन का दरवाज़ा एक नए विकल्प की तरह खुल सकता है।
चीन का यह वीजा कई मायनों में आसान और लचीला है। सबसे बड़ी राहत यह है कि अब विदेशी आवेदकों को किसी लोकल स्पॉन्सर या चीनी कंपनी की जरूरत नहीं होगी। यानी कोई भी योग्य उम्मीदवार सीधे अप्लाई कर सकेगा। यह वीजा मौजूदा 12 वीजा कैटेगरी में 13वीं कैटेगरी के रूप में जोड़ा गया है। सरकार ने साफ किया है कि अप्लिकेंट को अपनी पढ़ाई और योग्यता के दस्तावेज पेश करने होंगे।
यह वीजा खासतौर पर यंग साइंस और टेक्नोलॉजी ग्रैजुएट्स के लिए तैयार किया गया है। STEM डिग्री (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स) रखने वाले युवाओं को इसमें प्राथमिकता दी जाएगी. शर्त यह है कि उन्होंने अपनी पढ़ाई मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी या रिसर्च इंस्टीट्यूट से पूरी की हो। इससे चीन उम्मीद कर रहा है कि वह हजारों टैलेंटेड प्रोफेशनल्स को अमेरिका से खींचकर अपनी टेक और रिसर्च इंडस्ट्री से जोड़ सकेगा।