नई दिल्ली (नेहा): अगर कोई आपसे कहे कि अब आप टमाटर के भाव में थैला भरकर काजू ला सकते हैं तो शायद आपको इस पर यकीन नहीं होगा। लेकिन यह बिल्कुल सच है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं झारखंड के एक छोटे से जिले के बारे में, जो कभी साइबर अपराध के लिए बदनाम था लेकिन अब काजू के लिए मशहूर है। तो आइए जानते हैं कौन सा है यह गांव। झारखंड के मनोरम संथाल परगना क्षेत्र में बसा जामताड़ा हरियाली से भरा है और शांत ग्रामीण जीवन जीता है। जिले की लाल दोमट मिट्टी, मध्यम बारिश और हल्का तापमान काजू की खेती के लिए एकदम सही है। खेतों के चारों तरफ लगे सीमांत पौधे जो अब काजू के पेड़ बन चुके हैं जामताड़ा की पहचान बन गए हैं।
जामताड़ा में काजू की काफी ज्यादा कम कीमतों की वजह यहां की सरल लेकिन कुशल स्थानीय अर्थव्यवस्था है। अगर गोवा या फिर केरल जैसे तटीय राज्यों से तुलना करें तो यहां की कृषि भूमि काफी ज्यादा सस्ती हैं। इसी के साथ किसान और स्थानीय मजदूर काफी कम मजदूरी पर काम करते हैं, जिससे उत्पादन लागत भी कम हो जाती है। इतना ही नहीं बल्कि बिचौलियों पर निर्भर रहने के बजाय किसान सीधे बाजारों में या फिर छोटे सहकारी समूह के जरिए काजू बेचते हैं। इससे सीधे बाजार में बिक्री होती है और बिचौलियों को पूरी तरह से हटा दिया जाता है। बाकी काजू उत्पादक क्षेत्र की तुलना में यहां पर कीमतें 25% से 30% कम होती हैं।
यहां पर काजू सड़क किनारे ठेलों पर बिल्कुल दिल्ली या मुंबई की सब्जियों की तरह बिकते हैं। यहां से गुजरने वाले यात्रियों को ताजा कच्चे काजू के ढेर ₹50 प्रति किलो के दाम पर मिल जाते हैं। इसके ठीक उलट यही काजू एक बार संसाधित और पैक किए जाने के बाद दिल्ली एनसीआर के बाजारों में ₹600 से ₹900 प्रति किलो के बीच बिकते हैं। सफलता के बावजूद भी जामताड़ा का काजू उद्योग कई मुश्किलों का सामना कर रहा है। यहां पर किसान कच्चे काजू बेचते हैं जिस वजह से ज्यादा फायदा नहीं हो पाता। इसी के साथ उचित भंडारण के बिना काजू के जल्दी खराब होने का भी खतरा रहता है। इतना ही नहीं बल्कि सीमित संपर्क की वजह से किसान कम दामों पर अपनी उपज जल्दी बेच देते हैं।