नई दिल्ली (नेहा): छठ महापर्व के दौरान भगवान सूर्य और छठी मैया की अराधना की जाती है. आज छठ महापर्व का तीसरा दिन है। आज का दिन संध्या अर्घ्य का है। आज शाम के समय अस्ताचलगामी सूर्य यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हुए घर-परिवार और संतान की खुशहाली की कामना की जाती है। छठ पूजा का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। इस व्रत में डूबते सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है। सूर्य को अर्घ्य देने के नियम क्या हैं? चलिए इस बारे में जानते हैं।
छठ पूजा में आज शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दौरान सूर्य और षष्ठी माता के मंत्रों का जाप करना चाहिए। इस दिन व्रतियों का निर्जला व्रत होता है, जो खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद शुरू हो जाता है। संध्या अर्घ्य का दिन छठ पूजा का मुख्य दिन होता है। आज संध्या अर्घ्य का समय- शाम 4:50 मिनट से 5:41 मिनट तक है. कल उषा अर्घ्य यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और व्रत का पारण किया जाएगा।
सूर्य को अर्घ्य देने के लिए ताबें का लोटा या बर्तन लेना चाहिए। संध्या अर्घ्य देते समय मुख पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए. सूर्य को जल अर्घ्य देते समय दोनों हाथ सिर के ऊपर रखने चाहिए। सूर्य को अर्पित किए जाने वाले जल में लाल चंदन, सिंदूर और लाल फूल डालने चाहिए। अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र ओम सूर्याय नमः का जाप करना चाहिए। इसके बाद सूरज की ओर मुंह करते हुए 3 बार परिक्रमा करनी चाहिए। जल को पैरों में गिरने से बचाना चाहिए। उसे किसी गमले में या धरती पर विसर्जित कर देना चाहिए।
छठ महापर्व में संध्या अर्घ्य सूर्य देव की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित किया गया है। जो सूर्य देव की अंतिम किरण मानी जाती है। सूर्य देव को दिया जाने वाला संध्या अर्घ्य कृतज्ञता और संतुलन का प्रतीक कहा जाता है। संध्या अर्घ्य के जरिये प्रकृति का आभार व्यक्त किया जाता है। साथ ही ये जीवन के हर उतार-चढ़ाव को स्वीकार करने की भावना दर्शाता है।


