नई दिल्ली (नेहा): भारत के थलसेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा है कि आज के जटिल सुरक्षा माहौल में कोई भी देश अकेले सुरक्षित नहीं रह सकता। साझा रक्षा नवाचार ही सबसे मजबूत ढाल है। उन्होंने यह बात मंगलवार को आयोजित इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव 2025 में कही। यहां सेना, उद्योग और रक्षा विशेषज्ञों के वरिष्ठ प्रतिनिधि भी मौजूद थे। जनरल द्विवेदी ने कहा कि भारत की ढाई मोर्चों की चुनौती और ऑपरेशन सिंदूर के बाद मिली आर्थिक सशक्तता ने सेना को विकास और नए उपकरणों की तैनाती में अधिक लचीलापन दिया है। उन्होंने कहा कि अब सशस्त्र बलों के पास स्पाइरल डेवलपमेंट और इंडक्शन के लिए बेहतर संसाधन हैं। सेना प्रमुख ने कहा कि युद्ध का स्वरूप अब लगातार बदल रहा है, इसलिए जरूरी है कि देश रक्षा अनुसंधान एवं विकास और नई तकनीकों में लगातार निवेश करे।
सेना प्रमुख ने कहा कि युद्ध की अगली पीढ़ी किसी एक क्षेत्र या सिद्धांत से नहीं, बल्कि इस बात से तय होगी कि हम विचारों को कितनी तेजी से स्थायी क्षमताओं में बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि अवधारणा से क्षमता तक की यात्रा वास्तव में निर्भरता से प्रभुत्व तक की यात्रा है। जनरल द्विवेदी ने कहा कि रणनीतिक साझेदारी एक अवसर का पुल है। अनुसंधान एवं विकास हमें यह सिखाता है कि हम क्या बना सकते हैं, जबकि रणनीतिक साझेदारी हमें यह बताती है कि हम क्या प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए ब्रह्मोस मिसाइल और के9 वज्र तोप को साझा नवाचार की सफलता बताया।
उन्होंने कहा कि किसी भी अनुसंधान प्रयास की असली चुनौती शून्य से एक तक पहुंचने में होती है। एक बार यह उपलब्धि हासिल हो जाए, तो फिर एक से सौ तक पहुंचना आसान होता है। सेना प्रमुख ने कहा कि इसी चरण पर भारत को विशेष ध्यान देने की जरूरत है या फिर आवश्यकता पड़ने पर बाहरी सहयोग से तकनीक हासिल करनी होगी।


