नई दिल्ली (पायल): आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पहली बार संघ की कानूनी स्थिति और इसकी अपंजीकृत स्थिति से संबंधित सवालों को संबोधित करते हुए कहा कि कानून में हर संगठन के लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। भागवत ने कहा कि न तो आरएसएस और न ही ‘हिंदू धर्म’ पंजीकृत है।
बेंगलुरु में प्रभावशाली लोगों के साथ दो दिवसीय बातचीत के आखिरी दिन सवालों का जवाब देते हुए भागवत ने कहा, “कानून के तहत पंजीकरण न तो आवश्यक है और न ही अनिवार्य है।” हम कानून के तहत व्यक्तियों का एक अपंजीकृत निकाय हैं। आयकर विभाग ने पहले हमें कर चुकाने के लिए कहा था, लेकिन अदालतों ने संघ को दी गई गुरु दक्षिणा को कर से मुक्त कर दिया है। इसलिए हम संवैधानिक और कानूनी ढांचे के दायरे में हैं।”
भागवत ने कहा कि आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी और ब्रिटिश सरकार के पास इसका पंजीकरण नहीं हो सका। स्वतंत्रता के बाद, कानूनों ने पंजीकरण को अनिवार्य नहीं बनाया। आरएसएस प्रमुख ने कहा, “आरएसएस संघ के भीतर ही अपने वित्त का प्रबंधन करता है। केडर और कार्यकर्ता आरएसएस को दान देते हैं. यह संघ को दान है।” भागवत ने विपक्ष पर भी निशाना साधा, जो कहते हैं कि आरएसएस एक असंवैधानिक संगठन है।
उन्होंने पूछा, “हम पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया है और हर बार अदालतों ने प्रतिबंध का समाधान निकाला है। अगर हम एक संवैधानिक और कानूनी संस्था नहीं होते, तो हम पर प्रतिबंध कैसे लगाई जा सकती है? साथ ही, कई बार संसद में आरएसएस के पक्ष या विपक्ष में बयान दिये जाते हैं। अगर हम एक संवैधानिक कानूनी संगठन नहीं हैं तो क्या ऐसे बयान दिये जा सकते हैं?” भागवत ने कहा कि आरएसएस पंजीकृत नहीं है और न ही ‘हिंदू धर्म’ पंजीकृत है।


