नई दिल्ली (नेहा)- हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। संतोषी माता को संतोष, शांति और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। इनकी पूजा विशेष रूप से शुक्रवार के दिन की जाती है। मान्यता है कि जो भक्त निष्ठा और श्रद्धा से 16 शुक्रवार का व्रत करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है। संतोषी माता का 16 शुक्रवार का व्रत भक्तों के लिए वरदान स्वरूप है। इस व्रत से जीवन के दुःख, कष्ट और बाधाएँ दूर होकर सुख-शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। माता संतोषी की कृपा से हर मनोकामना पूर्ण होती है और जीवन में संतोष का वास होता है।
संतोषी माता का व्रत करने से घर में चल रहे क्लेश, आर्थिक तंगी और मानसिक अशांति दूर होती है। भक्त को माता का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में संतोष तथा प्रसन्नता आती है। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा सौभाग्य और परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है। संतोषी माता का यह व्रत करने से न केवल भौतिक सुख-समृद्धि मिलती है, बल्कि आध्यात्मिक संतोष भी प्राप्त होता है।
व्रत की विधि
सुबह स्नान कर घर को स्वच्छ करें और माता संतोषी की मूर्ति अथवा चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें। माता को लाल चुनरी, फूल, धूप-दीप और गुड़-चना अर्पित करें।व्रत में नमक और खट्टे पदार्थ का सेवन वर्जित है। पूरे दिन व्रत रखकर शाम को कथा सुनें या पढ़ें। व्रत के अंत में बच्चों या साधु-संतों को गुड़-चना का प्रसाद बांटें। इस व्रत को लगातार 16 शुक्रवार तक करना आवश्यक है।
व्रत से मिलने वाले लाभ
धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। गृहकलह और तनाव समाप्त होते हैं। विवाह में बाधाएँ दूर होकर सुखमय दांपत्य जीवन मिलता है। संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऋण और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। व्यवसाय और नौकरी में उन्नति होती है। भक्त के जीवन में संतोष और मानसिक शांति आती है।
प्रमुख लाभ
मनोकामना की पूर्ति– 16 व्रत पूरे करने से भक्त की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
गृहकलह का अंत– घर-परिवार में चल रहे झगड़े, क्लेश व मतभेद समाप्त हो जाते हैं।
धन व समृद्धि– माता की कृपा से घर में धन, वैभव और खुशहाली आती है।
वैवाहिक सुख– विवाह में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं और वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है।
संतान सुख– संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को संतान की प्राप्ति होती है।
रोग मुक्ति– असाध्य रोगों और दुखों से मुक्ति मिलती है।
मन की शांति– मानसिक अशांति, तनाव और चिंता दूर होकर संतोष की प्राप्ति होती है।
व्यापार व नौकरी में उन्नति– व्यवसाय में लाभ और नौकरी में तरक्की होती है।
सौभाग्य की वृद्धि– महिलाएँ यह व्रत करके अखंड सौभाग्य प्राप्त करती हैं।
भक्ति और श्रद्धा की वृद्धि– भक्त का मन आध्यात्मिकता और भक्ति की ओर प्रवृत्त होता है।
ऋण मुक्ति– माता की कृपा से कर्ज से मुक्ति मिलती है।
दरिद्रता का नाश– गरीबी और आर्थिक संकट से छुटकारा मिलता है।
सुख-समृद्धि में वृद्धि– घर में अन्न, धन और सुख-शांति का वास होता है।
परिवार में एकता– रिश्तों में मधुरता और प्रेम बढ़ता है।
भाग्य उदय– रुके हुए काम बनने लगते हैं और भाग्य प्रबल होता है।
संतोष प्राप्ति– जैसा नाम है, वैसे ही भक्त के जीवन में संतोष, शांति और प्रसन्नता आती है।


