नई दिल्ली (नेहा): सुप्रीम कोर्ट ने ने पारंपरिक चिकित्सा के भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित एक मामले की कार्यवाही बंद करते हुए पतंजलि और उसके प्रमोटर्स को बड़ी राहत दी है। साथ ही उस पूर्व स्टे को भी हटा दिया है जिसके तहत ऐसे विज्ञापनों के लिए राज्य की पूर्व स्वीकृति जरूरी थी। यह मामला भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ दायर एक याचिका से शुरू हुआ था, जिसमें आधुनिक चिकित्सा का अपमान करने वाले और निराधार स्वास्थ्य संबंधी दावे करने वाले विज्ञापनों का उल्लेख था। न्यायालय ने एक समय ऐसे विज्ञापनों पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया था और पतंजलि के प्रमोटर्स, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी।
इस मामले के दौरान, आयुष मंत्रालय द्वारा जुलाई 2024 में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 को हटाने के बाद, एक व्यापक नियामक प्रश्न सामने आकर खड़ा हुआ था। इस नियम के तहत अतिरंजित दावों को रोकने के लिए आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापनों को राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों द्वारा पूर्व-अनुमोदित करना आवश्यक था। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने अगस्त 2024 में अनुमोदन की आवश्यकता को बरकरार रखते हुए, इस नियम को हटाने पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी। हालांकि, सोमवार को न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन ने उस आदेश को कैंसल कर दिया।