नई दिल्ली (नेहा): चीन में आज SCO शिखर सम्मेलन का आखिरी दिन है, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की है। यह सम्मेलन सिर्फ वैश्विक राजनीति के लिहाज से जरूरी नहीं है, बल्कि AI और एडवांस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र को लेकर भी अहम है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने SCO सम्मेलन में शामिल हुए देशों से AI के सेक्टर में सहयोग मांगा है। एक्सपर्ट्स का मानना है भारत अपने सहयोग देकर जिनपिंग को एहसानमंद बना सकता है। AI के सेक्टर में भारत के पास दो ऐसे तरीके हैं, जिनसे वह चीन का सहयोग कर दे तो पश्चिमी देशों का AI पर से प्रभुत्व कम हो सकता है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोमवार को शंघाई सहयोग संगठन के सदस्यों से AI सहयोग को मजबूत करने का आग्रह किया। दरअसल, चीन चाहता है कि जैसे दुनिया की तमाम तकनीकों पर अमेरिका समेत बाकी पश्चिमी देशों ने कब्जा जमाया, वैसे ही AI के क्षेत्र में भी अपना दबदबा न बना ले। यही कारण है कि पुरानी बातों को भुलाकर चीन ने भारत से भी सहयोग की मांग की है।
ग्लोबली दे सकता है साथ: चीन चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र के तहत एक ग्लोबल साउथ एआई फोरम को बढ़ावा मिले। यदि भारत भी चीन के साथ मिलकर काम करने को तैयार हो जाता है, तो दोनों देश ऐसे नियम बनवा सकते हैं, जिनसे यह तय हो कि AI केवल ताकतवर देशों के हाथों में ना हो और विकासशील देशों को भी इसे पाने का बराबर मौका मिले। इससे ना सिर्फ AI governance का सपना पूरा हो सकता है, बल्कि AI में साउथ एशिया के देशों की साझेदारी भी मजबूत होगी। इसके अलावा, चीन को भारत का ग्लोबल AI बॉडी के लिए भी समर्थन चाहिए, भारत प्रत्यक्ष रूप से इसका समर्थन भले ना करे, लेकिन हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बाहर रहकर समर्थन दे सकता है।
AI टैलेंट और सॉफ्टवेर क्षमता की साझेदारी: चीन के पास भले ही हार्डवेयर और डेटा प्रोसेसिंग का गहरा अनुभव हो, लेकिन उसके पास AI टैलेंट और सॉफ्टवेयर क्षमता नहीं है, जिसकी पूर्ति भारत कर सकता है। टेक्नोलॉजी रिसोर्स ग्रुप (TRG) की रिपोर्ट ने भी बताया था कि भारत के पास चीन से ज्यादा AI पावर है, भले कंप्यूटिंग पावर की बात करें या बिजली क्षमता की। AI सुपर पावर देशों की रैंकिंग में भारत छठवें नंबर पर था, जबकि चीन सातवें नंबर पर। लिहाज चीन नहीं चाहेगा कि भारत का समर्थन अमेरिका को हो, इसलिए वह भारत को अपने पाले में करना चाहता है।