चेन्नई (राघव): चेन्नई की एनआईए की विशेष अदालत ने मानव तस्करी के एक मामले में दो बांग्लादेशी नागरिकों, शहाबुद्दीन हुसैन और मुन्ना उर्फ नूर करीम को दोषी ठहराते हुए दो साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई है। केंद्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की तफ्तीश को कोर्ट ने सही माना और दोनों पर 11,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। दोनों दोषी बांग्लादेश के चटगांव जिले के निवासी हैं और फर्जी दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड और सिम कार्ड का उपयोग कर भारत में अवैध रूप से रह रहे थे। एनआईए की जांच में खुलासा हुआ कि ये दोनों रोहिंग्या और बांग्लादेशी लोगों की भारत में तस्करी में शामिल थे।
एनआईए के अनुसार, दोनों दोषी फर्जी दस्तावेजों के जरिए भारत में अपनी पहचान छिपाकर रह रहे थे और बैंक खातों का दुरुपयोग कर रहे थे। ये लोग तस्करी के जरिए भारत लाए गए लोगों को जबरन यहां रखकर उनका शोषण करते थे और उनसे काम करवाते थे। पीड़ितों को न केवल गैरकानूनी तरीके से भारत लाया जाता था, बल्कि उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता था। इस मामले में तीसरे आरोपी, बाबू शोरिफुल, पर मुकदमा अभी भी चल रहा है। एनआईए की जांच ने इस संगठित मानव तस्करी नेटवर्क के कई पहलुओं को उजागर किया। जांच एजेंसी ने पाया कि यह नेटवर्क फर्जी दस्तावेजों का उपयोग कर लोगों को भारत में बसाने और उनके जरिए अवैध गतिविधियों को अंजाम देने में सक्रिय था। कोर्ट के इस फैसले से मानव तस्करी के खिलाफ भारत की सख्त कार्रवाई और एनआईए की प्रभावी जांच को बल मिला है। यह फैसला अवैध प्रवास और मानव तस्करी जैसे अपराधों के खिलाफ कड़ा संदेश देता है।