नई दिल्ली (नेहा): आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से दफ्तरों के काम तो आसान हो ही रहे हैं, अब कोर्ट भी इसकी सहायता लेकर काम करेंगे। भारत में भी न्यायपालिका अब AI का इस्तेमाल शुरू करने जा रही है, इसका सबसे ज्यादा फायदा उन लोगों को होगा, जो त्वरित फैसला चाहते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है- ‘Justice Delayed is Justice Denied’, हिंदी में इसका मतलब है कि न्याय में देरी न्याय से वंचित होने के समान ही है। लेकिन अब AI की मदद से छोटे-मोटे केस जैसे- ट्रैफिक नियम तोड़ने और जमीन से जुड़े विवादों का निपटारा जल्द से जल्द होगा। एक तरह से कह सकते हैं कि अब AI ‘माई लॉर्ड’ की भूमिका में दिखेगा।
रोबो जज नाम से आप कंफ्यूज ना हों, इसका मतलब ये नहीं है कि जज की कुर्सी पर रोबोट बैठने वाला है। यह तो इस तरह की तकनीक है, जिसमें AI के इस्तेमाल से केस की जानकारी जुटाई जाएगी, केस के बैकग्राउंड और पहले के फैसलों का एनालिसिस किया जाएगा। इससे जजों को तेजी से फैसले लेने में मदद मिलेगी। खास तौर पर छोटे अपराध जैसे ट्रैफिक नियम तोड़ने और लैंड डिस्प्यूट जैसे मामले आसानी से सुलझ सकेंगे। इन्हें इंसानी जजों के रिप्लेसमेंट के तौर पर ना देखा जाए, ये बस उनकी मदद करने के लिए है।
‘रोबो जज’ तकनीक को समझने के लिए और इसका इस्तेमाल सीखने के लिए सरकार ने जिला और सत्र न्यायालयों के जजों को ट्रेनिंग देने का कार्यक्रम शुरू किया है। इसके लिए जजों को विदेश भेजा जाएगा, जहां इस तरह की तकनीक पहले से सफलतापूर्वक काम कर रही है। जज यहां पर जानेंगे कि कैसे AI के जरिये फैसले लेने में मदद मिल सकती है, इसका इस्तेमाल कैसे न्याय तंत्र को एडवांस और तेज बना सकता है।
‘रोबो जज’ का कांसेप्ट सबसे पहले एस्टोनिया में शुरू हुआ। यहां 7000 यूरो से कम के विवादों में AI की मदद से फैसले सुनाए जाते है। यह यहां की ई-गवर्नेंस मॉडल का हिस्सा था। तकनीक पहले तो मिले हुए सारे सबूतों का एनालिसिस करती है, फिर फैसला देती है। यदि कोई इससे संतुष्ट नहीं है, तो वह मानव जज के पास अपील कर सकता है। चीन में भी इसी तरह के सिस्टम को अपनाया गया और लाखों मामलों में AI ने निष्पक्ष फैसले दिए। भारत ने दोनों देशों के सिस्टम को करीब से देखा, तीन साल पहले ही इस पर चर्चा शुरू हो गई थी। 2025 में भारत में इस प्लान को लागू कर सकता है।