सारण (पायल): बिहार की राजनीति में सियासी रंगों का खेल शुरू हो गया है। परसा और बनियापुर विधानसभा सीट से राजद के दो मौजूदा विधायकों ने ठीक चुनाव से पहले ऐसी चाल चली कि राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। परसा के राजद विधायक छोटेलाल राय ने जदयू का दामन थाम लिया है तो बनियापुर के राजद विधायक केदारनाथ सिंह भाजपा की गोद में जा बैठे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि दोनों को नए दलों ने न केवल बाहें फैलाकार अपनाया, बल्कि तुरंत अपना सिम्बल भी थमा दिया। हालांकि, दलबदल का यह अंदाज सारण के लिए नया नहीं है।
पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव में भी यहां कुछ ऐसा ही हुआ था। अमनौर सीट के पूर्व जदयू विधायक कृष्ण कुमार सिंह मंटू को एक बड़े नेता ने रातों-रात भाजपा की सदस्यता दिलवा कर टिकट थमा दी थी। वे चुनाव जीते और एकबार फिर से विधानसभा भी पहुंच गए।
परसा के मौजूदा विधायक छोटेलाल राय की राजनीतिक शुरूआत जदयू से हुई थी। बीच में लोजपा और लालू दरबार पहुंचे और तिसरी बार विधायक बने। अब जब वक्त बदला, हवा बदली तो उन्होंने अपने राजनीतिक गियर भी बदल डाले। गियर भी बदले तो ताबड़तोड़ बदले। सुबह राजद में थे, शाम को जदयू में गए, फिर रात में राजद और अगली सुबह वापस जदयू में चले आए।
छोटेलाल राय की राजनीतिक यात्रा पर नजर डालें तो वे पहली बार जदयू के सिम्बल पर अक्टूबर 2005 के चुनाव में परसा सीट से विधायक बने। फिर 2010 के चुनाव में भी जदयू के टिकट पर ही विधायक चुने गए।
2015 का चुनाव आते-आते इन्होंने लोजपा का दामन थाम लिया, इसके टिकट पर लड़े मगर चुनाव का हार गए। 2020 के चुनाव के ठीक पहले राजद के हरे रंग में रंगकर चुनावी अखाड़े में उतरे और बाजी मार एकबार फिर विधानसभा पहुंच गए। इस बार परसा सीट पर इनकी चुनावी टक्कर पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की पोती और राजद प्रत्याशी करिश्मा राय से हो रहा है।
बनियापुर के मौजूदा विधायक केदारनाथ सिंह की चुनावी यात्रा जदयू से ही शुरू हुई थी। वे सर्वप्रथम अक्टूबर 2005 के चुनाव में मशरक विधानसभा सीट से जदयू के विधायक निर्वाचित हुए। मशरक सीट विलोपित हुआ और वे राजद में आ गए। बनियापुर विधानसभा सीट से राजद के सिम्बल पर 2010, 2015 और 2020 में विधायक चुने गए।
चार टर्म के विधायक केदारनाथ सिंह ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ही राजद से सैद्धांतिक दूरी बना ली थी और परोक्ष ढ़ंग से जदयू के हो गए थे। गठबंधन की सीट शेयरिंग में इसबार जब बनियापुर भाजपा के खाते में गया तो इनका भी हृदय परिवर्तन हो गया।
रातों-रात इन्होंने पाला बदला और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर टिकट झटक ली। अब इनका चुनावी मुकाबला मशरक की जिलापार्षद और यहां के विधायक रहे स्व. अशोक सिंह की विधवा राजद उम्मीदवार चांदनी देवी से है।
राजनीति में ऐसे पल अक्सर देखे जाते हैं, जब नेता अपने सियासी भविष्य देखते हुए पाला बदलते हैं। इनके पास सिद्धांत व विचारधारा की बात न होकर किसी प्रकार पद हासिल करना प्रमुख होता है, लेकिन इस बार की बात थोड़ी अलग है। सारण में एक ही पार्टी से चुनाव जीतने वाले दो विधायक एक ही रात में दो अलग-अलग दलों में शामिल हो जाते हैं और दोनों को फौरन टिकट भी मिल जाता है – यह कम ही देखा गया है।
बहरहाल, चुनाव अब करीब है और सियासी खेल ने तेजी पकड़ ली है। नेताओं ने अपनी नई जमीन तलाश ली है। दलबदल की खेल बताता है कि बिहार की राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं – न विचारधारा, न रिश्ते और न दल। यहां की सियासत में हर चीज बदलती है, बस बदलने का अंदाज इसबार अलग है।
परसा और बनियापुर सीट के मतदाताओं के लिए यह चुनाव अब और भी दिलचस्प होने वाला है। सारण ही नहीं पूरे बिहार के लोग यह देखने को बेताब हैं कि इस रंग बदलते माहौल में परसा और बनियापुर सीट पर कौन सा चेहरा असली चमक दिखाएगा।