नई दिल्ली (नेहा): नए पुलिस आयुक्त सतीश गोलचा दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर व सब-इंस्पेक्टर (एसआई) का ग्रेड बढ़वाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने कवायाद शुरू कर दी है। पुलिस आयुक्त सचिवालय की ओर से दिल्ली सरकार के पत्र लिखा गया है जिसमें इंस्पेक्टर व एसआई को सी ग्रेड से बी ग्रेड में करने का निवेदन किया गया है। ग्रेड बढ़ने से दिल्ली पुलिस के इन रैंक के अधिकारियों की तनख्वाह में बढ़ोतरी होगी। दिल्ली पुलिस सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पुलिस आयुक्त सतीश गोलचा ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को अपने अधिनस्थ अधिकारियों के साथ बैठक की। उसमें दिल्ली पुलिस मुख्यालय व एचआरडी से जुड़े ज्यादातर अधिकारी मौजूद थे।
इस दौरान इंस्पेक्टर व एसआई स्तर के अधिकारियोंं के ग्रेड बढ़ाने और पिछले दो पे कमीशन के अनुसार सैलरी दिलवाने की कवायद को तेज करना तय हुआ। एक अधिकारी ने बताया कि दिल्ली पुलिस के एसआई व इंस्पेक्टर सी ग्रेड में आते हैं। उनका पे स्केल 4600 रुपये बताया जा रहा है। सी ग्रेड में पी स्केल होने के कारण 10 साल में 4800 का स्केल मिलना शुरू होता है। अगर ये अधिकारी बी ग्रेड में होते तो चार साल बाद ही 5400 का पे स्केल मिलना शुरू हो जाता है। बताया कि देश की ज्यादातर पुलिस व अर्द्धसैनिक बल, सीबीआई व दिल्ली सरकार के इस स्तर के अधिकारियों को ज्यादा सैलरी मिलती है। साथ ही इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी राजपत्रित अधिकारी की श्रेणी में आते हैं। दिल्ली पुलिस के एसआई व इंस्पेक्टर को कम सैलरी मिलती है। साथ ही उन्हें दो पे कमीशन के हिसाब से भी सैलरी नहीं मिलती।
दिल्ली पुलिस के पूर्व प्रवक्ता राजन भगत ने बताया कि दिल्ली पुलिस के एसआई, इंस्पेक्टर व डीएसपी की सैलरी यानि चौथे पे कमीशन के हिसाब से पद देने के लिए प्रयास किए गए थे। उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री व बूटा सिंह गृहमंत्री थे। तभी दिल्ली पुलिस का एक डेलीगेशन उनसे मिलने गया था। इस डेलीगेशन में पुलिस आयुक्त वेद मारवाह, एडिशनल पुलिस आयुक्त गौतम कॉल (प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बुआ के लड़के), पुलिस उपायुक्त अमोद कंठ व किरण बेदी व इंस्पेक्टर राजन भगत शामिल थे।
मुलाकात के दौरान एसआई व इंस्पेक्टर की सैलरी बढ़ा दी गई थी। मगर तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर राजघाट पर गोली चलने से यह मामला अटक गया था। पूर्व प्रवक्ता राजन भगत ने बताया कि चौथा पे कमीशन 1986 में आया था। तब से लेकर अब तक किसी ने ग्रेड व सैलरी बढ़ाने का प्रयास नहीं किया। 1986 में कुछ विसंगतियां रह गई थीं। तब डीएसपी बनने पर 3000 रुपये का घाटा होता था।