नई दिल्ली (नेहा): महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने वाला POSH एक्ट अब राजनीतिक दलों पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने वाले कानून के दायरे में लाने की मांग थी। अदालत ने साफ कहा कि राजनीतिक दल “कार्यस्थल” की परिभाषा में नहीं आते और न ही उनके और उनके कार्यकर्ताओं के बीच नियोक्ता-कर्मचारी का रिश्ता है। यह फैसला उन महिलाओं के लिए झटका है जो गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में काम करती हैं।
याचिकाकर्ता के वकील योगमाया एमजी ने केरल हाई कोर्ट के मार्च 2022 के फैसले को चुनौती दी थी। केरल हाई कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दलों और समान संगठनों को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की जरूरत नहीं, क्योंकि उनके पास पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी का रिश्ता नहीं है। याचिका में दलील दी गई थी कि यह फैसला POSH एक्ट के मकसद को कमजोर करता है और महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। POSH एक्ट, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के मशहूर विशाखा बनाम राजस्थान मामले के फैसले के आधार पर बनाया गया था। इसका मकसद था कि हर कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिले।
याचिका में कहा गया कि इस कानून में “नियोक्ता”, “कर्मचारी” और “कार्यस्थल” की परिभाषा को जानबूझकर व्यापक रखा गया ताकि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इसका फायदा उठा सकें। लेकिन केरल हाई कोर्ट के फैसले ने इस मकसद को कमजोर कर दिया। याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि राजनीतिक दल और फिल्म इंडस्ट्री जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को भी इस कानून का संरक्षण मिलना चाहिए। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक दलों और इंडस्ट्री एसोसिएशनों को POSH एक्ट के दायरे में लाए और प्रभावी ICC या सेक्टर-विशिष्ट शिकायत तंत्र बनाने का आदेश दे।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को “कार्यस्थल” मानना मुश्किल है। इस बेंच में चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और अतुल एस. चंदुरकर शामिल थे। अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि जब नियोक्ता-कर्मचारी का रिश्ता ही नहीं है, तो POSH एक्ट कैसे लागू हो सकता है? पिछले महीने भी सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज किया था, जिसमें राजनीतिक दलों को POSH एक्ट के दायरे में लाने की मांग थी। हालांकि, तब कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी थी कि वे केरल हाई कोर्ट के फैसले को विशेष अनुमति याचिका (SLP) के जरिए चुनौती दें। पिछले साल दिसंबर में भी सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी ही याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग से संपर्क करने को कहा था, यह कहते हुए कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आंतरिक शिकायत तंत्र बनाने के लिए प्रेरित करना चुनाव आयोग का काम है।