नई दिल्ली (नेहा): सीरिया में लगभग 14 साल बाद संसदीय चुनाव हुए हैं। एक ऐसा देश जो बशर अल-असद की तानाशाही और 13 साल लंबे गृहयुद्ध से तबाह हुआ। रविवार सुबह दमिश्क में मतदान शुरू हुआ तो इसे असद युग के अंत के बाद ‘नए दौर की शुरुआत’ बताया गया। पिछले साल दिसंबर में तख्तापलट किए जाने के बाद अहमद अल-शरा ने अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर सत्ता संभाली थी। इसके बाद उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों से संबंध बेहतर किए। अल-शरा को अमेरिका ने मई 2013 में स्पेशल डेसिग्नेटेड ग्लोबल टेररिस्ट (SDGT) घोषित किया था। 12 साल बाद अमेरिका ने जुलाई 2025 को उनका नाम आतंकियों की सूची से बाहर किया। अपने आप में यह एक अनोखा मामला है।
अल-शरा ने पिछले साल अंतरिम राष्ट्रपति का पद संभलाने के बाद वादा किया था कि यह चुनाव ‘लोकतांत्रिक बदलाव’ की दिशा में पहला कदम होगा, मगर हकीकत में जनता को वोट देने का अधिकार ही नहीं मिला। 210 सदस्यीय संसद में दो-तिहाई यानी 140 सीटों पर मतदान 7 हजार चयनित चुनावी कॉलेज सदस्यों ने किया, जिन्हें सरकार द्वारा नियुक्त जिला समितियों ने चुना था। शेष 70 सीटें खुद शरा की नियुक्ति से भरी जाएंगी।
आम जनता और राजनीतिक दल दोनों ही चुनाव प्रक्रिया से बाहर हैं। सबसे बड़ा विवाद ‘जनता की अनुपस्थिति’ का है। आलोचकों के मुताबिक यह चुनाव शरा सरकार की वैधता मजबूत करने की कवायद है, न कि जनता की इच्छा का प्रतीक। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है, सीरिया की यह पहली ‘आजादी के बाद की संसद’ लोकतंत्र की दिशा में कदम भले हो, लेकिन जनता की भागीदारी के बिना यह महज सत्ता परिवर्तन का औपचारिक चेहरा बनकर रह गया है। इस चुनाव में अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा की जीत तय है।