नई दिल्ली (उपासना): सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के अधिकारियों पर वन भूमि की रक्षा में “अपनी जिम्मेदारियों का परित्याग” करने के लिए कठोर टिप्पणी की। उच्चतम न्यायालय ने वारंगल जिले में 106.34 एकड़ वन भूमि को निजी व्यक्ति के हाथों में सौंपने वाले उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया। इस व्यक्ति ने अपनी मालिकाना हक का कोई प्रमाण नहीं दिखाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय की आलोचना करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय ने बड़ी ही कृपा करके वन भूमि को एक निजी पार्टी को “उपहार” स्वरूप दे दिया, जबकि उस व्यक्ति ने अपने अधिकारों का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया था। इस निर्णय के साथ, शीर्ष अदालत ने एक बार फिर से यह स्पष्ट किया कि पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण हमारे देश के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए।
इस घटना ने वन भूमि की रक्षा के लिए अधिकारियों के उत्तरदायित्व को एक बार फिर से रेखांकित किया है। यह मामला यह भी दर्शाता है कि कानूनी प्रणाली के भीतर कैसे सुधारों की आवश्यकता है ताकि वन भूमि का दुरुपयोग रोका जा सके।
आने वाले समय में, सुप्रीम कोर्ट की इस तरह की सख्ती से अन्य अदालतों और अधिकारियों को भी एक स्पष्ट संदेश जाता है कि पर्यावरण संरक्षण में किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।