नई दिल्ली (नेहा): NEET की अनिवार्यता को लेकर चल रही लड़ाई ने एक नया मोड़ ले लिया है। राष्ट्रपति के एंटी नीट बिल पर रोक लगाने के फैसले को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राज्य सरकार ने राष्ट्रपति के फैसले को ‘कानूनी रूप से अस्थिर और संवैधानिक रूप से अनुचित’ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है।
दरअसल, यह विवाद ‘तमिलनाडु एडमिशन टू अंडग्रेजुएट मेजिकल कोर्स बिल 2021 (L.A. Bill No. 43 of 2021)’ से शुरू हुआ था, जो एक एंटी-नीट बिल है। अगर इस एंटी नीट बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है तो तमिलनाडु में नीट परीक्षा रद्द हो जाएगी। यहां एमबीबीएस, बीडीएस समेत अन्य यूजी मेडिकल कोर्स में बिना नीट यूजी के एडमिशन हो सकेंगे। नीट यूजी के बजाय 12वीं क्लास में प्राप्त मार्क्स के आधार पर डॉक्टरी की पढ़ाई करना संभव हो सकेगा।
तमिलनाडु सरकार अंडरग्रजुएट मेडिकल कोर्स में एडमिशन के लिए एंट्रेंस एग्जाम यानी नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET UG) के खिलाफ है। राज्य सरकार लंबे समय से इस परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रही है। यहां तक कि साल 2021 में तमिलनाडु विधासभा में नीट विरोधी बिल (Anti-NEET Bill) पहले ही पास कराया जा चुका है। और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेज दिया गया है।
नीट की अनिवार्यता खत्म करने को लेकर तमिलनाडु सरकार के एंटी-नीट बिल पर राष्ट्रपति ने रोक लगा दी थी। केंद्र सरकार द्वारा जांच के बाद गृह मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। यह पत्र तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार को भेज दिया गया, जिससे विधायी प्रक्रिया औपचारिक रूप से बंद हो गई। अब राज्य सरकार ने राष्ट्रपति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि नीट ‘ग्रामीण और सरकारी स्कूलों की पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए नुकसानदेह है,’ और राज्य विधानसभा ने लगभग सर्वसम्मति से इस विधेयक को पारित कर दिया था। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड मीशा रोटागी मोहता द्वारा दायर याचिका, राष्ट्रपति द्वारा NEET विरोधी विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करने को चुनौती देती है। इसकी पैरवी सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन कर रहे हैं।
सरकार ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह मंजूरी न देने के फैसले को असंवैधानिक घोषित करे और विधेयक पर उसके अच्छे-बुरे नतीजों के आधार पर फिर से विचार करे। याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति का यह फैसला मनमाना है, NEETके प्रभाव पर राज्य के आंकड़ों पर आधारित नतीजों को नजरअंदाज करता है और राज्य विधानसभाओं की स्वायत्तता को कमजोर करता है। सरकार का कहना है कि राष्ट्रपति का यह कदम संघवाद और विधायी क्षमता से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है।


