नई दिल्ली (राघव): भारत सरकार ने शनिवार को पूर्वोत्तर भारत और विदेशों में निर्यात किए जाने वाले बांग्लादेशी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। बांग्लादेश भारतीय निर्यात पर नॉन टैरिफ बाधाएं डाल रहा था। ऐसे में भारत के कदम को उसके रिएक्शन पर देखा जा रहा है। भारत का यह कदम मुश्किलों से जूझ रहे बांग्लादेश के लिए मुश्किलों वाला हो सकता है।
दरअसल, भारत में केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय ने शनिवार को एक अधिसूचना जारी की है। इसमें कहा गया है कि प्रतिबंध बांग्लादेश से भारत में मछली, एलपीजी, खाद्य तेल और कुचल पत्थर के आयात पर लागू नहीं होंगे। इसमें कहा गया है कि प्रतिबंध भारत से होकर नेपाल/भूटान को बांग्लादेश द्वारा किए जाने वाले निर्यात पर भी लागू नहीं होंगे।
यह प्रतिबंध बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस द्वारा बीजिंग में दिए गए उस बयान के डेढ़ महीने बाद लगाए गए हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत “चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ है और ढाका इस पूरे क्षेत्र के लिए महासागर का एकमात्र संरक्षक है” – उन्होंने यह टिप्पणी “चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तार” की मांग करते हुए की थी।
भारत ने असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में सभी भूमि सीमा शुल्क स्टेशनों (एलसीएस) या एकीकृत जांच चौकियों (आईसीपी) और उत्तरी बंगाल में चंगराबांधा और फुलबारी के माध्यम से भारत को बांग्लादेशी निर्यात पर बंदरगाह प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। उत्पादों में रेडीमेड वस्त्र, लकड़ी के फर्नीचर, प्लास्टिक और पीवीसी तैयार माल, फल वाले और कार्बोनेटेड पेय, बेक्ड सामान, स्नैक्स, चिप्स और कन्फेक्शनरी आइटम तथा सूती धागा आदि शामिल हैं।
पूर्वोत्तर में प्रतिबंधों का कारण यह है कि भारत ने पहले सभी एलसीएस और आईसीपी तथा बंदरगाहों के माध्यम से बांग्लादेशी वस्तुओं के निर्यात को बिना किसी अनावश्यक प्रतिबंध के अनुमति दे दी थी। बांग्लादेश ने भारतीय निर्यात पर बंदरगाह प्रतिबंध लगाना जारी रखा है, विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा से लगे एलसीएस और आईसीपी पर, जबकि यह मुद्दा लंबे समय से सभी प्रासंगिक बैठकों में उठाया जा रहा है। ऐसे में दिल्ली का आकलन है कि बांग्लादेश द्वारा अनुचित रूप से उच्च और आर्थिक रूप से अव्यवहारिक पारगमन शुल्क लगाए जाने के कारण पूर्वोत्तर में औद्योगिक विकास को तिहरे खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जिससे द्विपक्षीय पारगमन समझौतों के बावजूद, व्यवहार में पूर्वोत्तर को अपने विनिर्मित वस्तुओं और इनपुट के लिए शेष भारत तक पहुंच से वंचित होना पड़ रहा है।