नई दिल्ली (नेहा): भारत के साथ संघर्ष कर रहे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था एक बार फिर ठहने के कगार पर है। इसे गहरे आर्थिक संकट से निकालने के लिए शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की बैठक है। भारत भी आईएमएफ के प्रबंधन का हिस्सा होने की वजह से इस बैठक में हिस्सा लेगा और पाकिस्तान की आतंकवादी चेहरे को यहां भी बेनकाब करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा। वैसे भारत के विरोध के बावजूद पाकिस्तान को पैकेज मिलने के प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने के पूरे आसार हैं क्योंकि आईएमएफ में दो सबसे बड़े हिस्सेदार देश अमेरिका और चीन की तरफ से किसी विरोध की संभावना नहीं है। इस स्थिति के बावजूद भारत सदस्य देशों को बताएगा कि सीमा पार आतंकवाद को सरकार की नीति का हिस्सा बनाने वाले पाकिस्तान को वित्तीय पैकेज देने का मतलब वैश्विक आतंकवाद को बढ़ावा देना है।शुक्रवार की आइएमएफ की बैठक को लेकर भारत की रणनीति के बारे में संकेत विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दिए।
मिसरी ने बताया कि, “इस बैठक में आइएमएफ बोर्ड में भारत के निदेशक पाकिस्तान को लेकर अपना पक्ष रखेंगे। जो लोग पाकिस्तान के लिए अपनी पाकेट से पैसे देते हैं उन्हें आतंकवाद को लेकर उसके रिकार्ड के बारे में भी पता होना चाहिए। पाकिस्तान की स्थिति अपने आप सब कुछ कहता है। आइएमएफ बोर्ड सदस्यों को पाकिस्तान को आगे मदद देने से पहले जमीनी स्थिति को समझना चाहिए। पिछले तीन दशकों में कई बार बार पाकिस्तान को आर्थिक संकट से निकालने के लिए अतिरिक्त पैकेज दिया गया है। आपको मालूम होना चाहिए कि उनमें से बहुत ही कम पैकेज सफल रहे हैं।” परमेश्वरन अय्यर आइएमएफ में भारत के अधिशासी निदेशक हैं। वह भारत का पक्ष इस बैठक में रखेंगे। बैठक में पाकिस्तान को दो अरब डॉलर के वित्तीय पैकेज दिए जाने के प्रस्ताव पर बात होगी। वर्ष 2023 में भी पाकिस्तान को एक पैकेज दिया गया था।
इस पैकेज की शर्त के तहत पाकिस्तान सरकार को इकोनमी को पटरी पर लाने के लिए कई कठोर फैसले करने पड़े हैं। इसका असर पाकिस्तान की आर्थिकी पर दिखा है। विदेश मुद्रा भंडार में सुधार होने के साथ ही वहां महंगाई भी कम हुई है। हालांकि पाकिस्तान की सबसे बड़ी समस्या 130 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है जिसका ब्याज की अदाएगी उसे निरंतर करनी पड़ रही है। भारत के साथ अभी युद्ध वाली स्थिति है।