नई दिल्ली (नेहा): भारत ने आतंकियों के आका पाकिस्तान को एक बार फिर से उसकी हैसियत याद दिला दी। भारत ने शुक्रवार (27 जून 2025) को सिंधु जल संधि के तहत बनी मध्यस्थता कोर्ट को अवैध बताया और उसकी अधिकारिता को खारिज कर दिया। कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने सप्लीमेंटल अवॉर्ड जारी करते हुए दावा किया कि उसे 1960 की सिंधु जल संधि के तहत किशनगंगा और रातले बांधों पर फैसला लेने का अधिकार है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह तथाकथित कोर्ट अवैध है, क्योंकि इसका गठन 1960 की सिंधु जल संधि का उल्लंघन करके किया गया था। मंत्रालय ने कहा, “भारत ने कभी भी इसके अस्तित्व या इसके किसी भी पिछले फैसले को स्वीकार नहीं किया है। हमने कभी भी इस कोर्ट को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी है। इस कोर्ट की ओर से लिया गया कोई भी फैसला अवैध है।”
विदेश मंत्रालय ने दोहराया कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करना बंद नहीं कर देता, तब तक भारत इस संधि से जुड़े किसी भी दायित्व को नहीं मानेगा। मंत्रालय ने कहा कि किसी भी अदालत को खासकर इस तरह की अवैध कोर्ट को भारत के संप्रभु अधिकारों की समीक्षा करने का हक नहीं है।
विदेश मंत्रालय ने कहा, “पाकिस्तान की पहचान आतंकवाद के अड्डे के रूप में हो चुकी है और इससे ध्यान भटकाने के लिए वह झूठी और भ्रामक कार्रवाइयों का सहारा लेता है। कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन जैसी नौटंकी उसी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें पाकिस्तान खुद को पीड़ित दिखाने की कोशिश करता है।”
सिंधु जल संधि का उद्देश्य दोनों देशों के बीच नदियों के जल बंटवारे की शर्तें तय कर विवाद को समाप्त करना था। सिंधु नदी प्रणाली में कुल छह नदियां शामिल हैं, जिनमें तीन पूर्वी नदियां रावी, ब्यास, सतलुज और तीन पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम, चिनाब हैं। इस समझौते के तहत भारत को पूर्वी नदियों का नियंत्रण और उपयोग का अधिकार मिला है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का नियंत्रण मिला है।
पाकिस्तान की लगभग 80 फीसदी कृषि सिंचाई सिंधु जल प्रणाली पर निर्भर है। सिंधु जल समझौते पर भारत के रोक लगाने से पाकिस्तान में सिंधु नदी में पानी नहीं पहुंच पाएगा, जिससे जल संकट पैदा होगा और इसका सीधा असर वहां की खेती पर पड़ेगा।