नई दिल्ली (नेहा): जमीयत उलेमा हिंद की तरफ से मौलाना अरशद मदनी दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे हैं। हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में याचिकाकर्ता ने उदयपुर फाइल्स फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की है। फिल्म 11 जुलाई को विश्व स्तर पर रिलीज होने वाली है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि फिल्म का ट्रेलर जो 26 जून को जारी हुआ वो समुदाय विशेष के प्रति नफरत फैलाने वाला है। देश में पहले से ही मौजूद धार्मिक तनाव को और भड़काने वाला है। याचिका के मुताबिक फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन से जिस तरीके से सर्टिफिकेट दिया गया है। वह सिनेमा अधिनियम, 1952 की धारा 5बी और 1991 में बनाए गए फिल्म प्रमाणन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि कोर्ट CBFC दी गई सर्टिफिकेशन को रद्द करे और फिल्म की रिलीज पर तत्काल रोक लगाए। फिल्म कथित रूप से 2022 में उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या पर आधारित है। लेकिन याचिकाकर्ता का कहना है कि इसमें कोर्ट की कार्यवाही एक मुख्यमंत्री का पक्षपाती बयान और नूपुर शर्मा के दिए गए विवादास्पद बयान को दोहराया गया है।
याचिका में कहा गया है कि यही बयान पहले भी देश में हिंसा और तनाव का कारण बने थे और अब फिल्म में उन्हीं बातों को दोहराकर सांप्रदायिक भावनाओं को फिर से भड़काने की कोशिश की जा रही है। कोर्ट में दाखिल अर्जी में याचिकाकर्ता का दावा है कि फिल्म का ट्रेलर मुस्लिम समुदाय को एकतरफा और नकारात्मक तरीके से प्रस्तुत करता है। जिससे समुदाय की गरिमा और जीने के अधिकार का उल्लंघन होता है। ट्रेलर में कथित रूप से धार्मिक नेताओं को नाबालिग बच्चों के साथ आपत्तिजनक संबंधों में दिखाया गया है, जो कि अत्यंत आपत्तिजनक और उचित दृश्य नही है। याचिकाकर्ता के मुताबिक फिल्म में ज्ञानवापी मुद्दे को भी छेड़ा गया है जो वर्तमान में वाराणसी की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि ऐसे विवादित मुद्दों का फिल्म के रूप में दिखाना न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने और धार्मिक सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास किया गया है। कोर्ट में दाखिल याचिका में यह भी कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग इस तरह नहीं किया जा सकता है। जिससे समाज में नफरत फैले, भाईचारे पर आघात हो और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समाज में विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, विचारों और जीवनशैली के लोगों का शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व कमजोर हो. यह फिल्म न केवल सांप्रदायिक तनाव को हवा देती है बल्कि यह आर्टिकल 14, 15 और 21 के तहत मूल अधिकारों का भी उल्लंघन करती है।
हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में यह दलील दिया गया है कि CBFC ने अपने कर्तव्यों की अनदेखी की और ऐसे दृश्य और डायलॉग को सर्टिफिकेट दे दिया जो सीधे तौर पर नफरत फैलाते हैं। ऐसे में कोर्ट को इस पर विचार करने की जरूरत है। सिनेमा अधिनियम की धारा 5बी के तहत ऐसे किसी भी दृश्य को सर्टिफिकेशन नहीं दिया जा सकता जो अश्लील, अनैतिक, या सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ हो। साथ ही 1991 के दिशानिर्देशों में यह स्पष्ट कहा गया है कि कोई भी फिल्म ऐसा दृष्टिकोण न दिखाए जो सांप्रदायिक भावना या राष्ट्रविरोधी विचारों को बढ़ावा दे। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट से मांग की है कि फिल्म की रिलीज को रोका जाए और CBFC से जारी सर्टिफिकेट को रद्द किया जाए। ताकि देश की शांति, सौहार्द और कानून व्यवस्था बनी रह सके। दिल्ली हाई कोर्ट जमीयत की तरफ से दाखिल अर्जी पर सोमवार को सुनवाई कर सकता है।