दिल्ली (नेहा): अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा पुलिस की ओर से दर्ज की गई FIR पर रोक लगा दी है और जिला मजिस्ट्रेट को इस मामले में संज्ञान लेने से मना किया है। यह मामला प्रोफेसर के सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है, जो “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि जिला मजिस्ट्रेट अब इस FIR पर संज्ञान नहीं ले सकते। पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि एक FIR में क्लोजर रिपोर्ट दायर कर दी गई है, जबकि दूसरी FIR में चार्जशीट दाखिल की गई है। इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने FIR को रद्द कर दिया और दूसरी FIR पर भी मजिस्ट्रेट को रोक लगा दी।
प्रोफेसर महमूदाबाद की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि यह “दुर्भाग्यपूर्ण” है कि पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 लगाई, जो देश की संप्रभुता पर हमले से जुड़े अपराधों से संबंधित है. उनका कहना था कि सिर्फ सोशल मीडिया पोस्ट पर इतनी गंभीर धारा लगाना गलत है। जुलाई की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा की SIT को फटकार लगाई थी. अदालत ने कहा था कि SIT जांच को गलत दिशा में ले जा रही है और उसे दायरा बढ़ाने की बजाय तय समय में जांच पूरी करनी चाहिए। कोर्ट ने SIT को चार हफ्तों में जांच पूरी करने का आदेश दिया था।
42 वर्षीय अली खान महमूदाबाद, जो अशोका यूनिवर्सिटी (सोनीपत) में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं, उनको 18 मई को गिरफ्तार किया गया था। यह गिरफ्तारी बीजेपी युवा मोर्चा हरियाणा के महासचिव योगेश जाठेरी की शिकायत पर हुई थी। हालांकि, 21 मई को उन्हें जमानत मिल गई। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते समय शर्त रखी थी कि प्रोफेसर महमूदाबाद सोशल मीडिया पर उस विषय में कुछ नहीं लिखेंगे, जो इस मामले से जुड़ा है। साथ ही वे भारत पर हुए आतंकी हमले और भारत की ओर से दिए गए जवाबी कदमों पर भी कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।