नई दिल्ली (पायल): अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US Sanctions Russian Oil Companies) की लीडरशिप वाले एडमिनिस्ट्रेशन ने बुधवार को रूस की दो सबसे बड़ी तेल प्रोड्यूसर कंपनियों, रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगा दिए। यूएस के प्रतिबंधों से रूस पर यूक्रेन में अपनी लड़ाई खत्म करने का दबाव बढ़ गया।
यह कदम मॉस्को के खिलाफ वाशिंगटन के अब तक के सबसे बड़े प्रतिबंधों में से एक माना जा रहा है, जिसकी घोषणा ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट के व्लादिमीर पुतिन पर US प्रेसिडेंट के साथ बातचीत में “ईमानदारी से” शामिल न होने का आरोप लगाने के बाद की गई थी। इस प्रतिबंध का भारत समेत बाकी दुनिया पर क्या असर पड़ेगा, आइए जानते हैं।
रूस की दो सबसे बड़ी क्रूड कंपनियों पर ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन के नए प्रतिबंधों के बाद बुधवार शाम को तेल की कीमतों में लगभग 3% की बढ़ोतरी हुई। तेल के दाम बढ़ना भारत समेत बाकी दुनिया के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि इससे महंगाई बढ़ने का खतरा रहता है।
अमेरिकी प्रतिबंधों पर रूस ने चेतावनी दी है। रूस ने कहा है कि इन प्रतिबंधों से विकासशील देशों की ऊर्जा सुरक्षा पर असर पड़ेगा। इस ऊर्जा सुरक्षा में तेल और गैस दोनों शामिल हैं। भारत रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है और अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद इसमें कमी आ सकती है।
यूएस के रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंधों का सीधा मकसद क्रेमलिन की तेल से होने वाली कमाई को रोकना है। लेकिन इस कदम से रूसी तेल का फिजिकल फ्लो कम हो सकता है और खरीदारों को वॉल्यूम को ओपन मार्केट में री-रूट करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। इसका असर सप्लाई पर पड़ेगा।
जिन दो रूसी कंपनियों पर यूएस ने प्रतिबंध लगाएं है, उनमें से रोसनेफ्ट “नायरा एनर्जी” की पैरेंट कंपनी है, जिसके पास भारत में पेट्रोल पंपों का सबसे बड़ा प्राइवेट नेटवर्क है। इसके पास भारत में 6,500 से ज्यादा स्टेशन हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों का नायरा पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि नायरा भारत की दूसरी सबसे बड़ी निजी रिफाइनरी (वादिनार, गुजरात में 20 मिलियन टन सालाना क्षमता) ऑपरेट करती है।
रोसनेफ्ट के पास नायरा का मालिकाना हक होने के कारण कई चुनौतियां सामने आ सकती हैं।
जानकारी मुताबिक भारत की सरकारी रिफाइनर कंपनियां रूस से तेल बैरल खरीदने का रिव्यू कर रही हैं ताकि यह पक्का हो सके कि अमेरिका द्वारा उन पर बैन लगाए जाने के बाद रोसनेफ्ट और लुकोइल से सीधे कोई सप्लाई नहीं आए।
पिछले 3.5 सालों में रूस पर लगे लगभग सभी प्रतिबंध, देश के प्रोडक्शन वॉल्यूम या तेल से होने वाले रेवेन्यू पर खास असर डालने में नाकाम रहे हैं। वहीं भारत और चीन में रूसी तेल के कुछ खरीदार अपनी खरीदारी जारी रखे हुए हैं।