नई दिल्ली (नेहा)- आज महान क्रांतिकारी राजगुरू की 116वीं जयंती है। राजगुरू का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था। देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूलने वाले इस महान सेनानी को हमेशा याद किया जाता रहेगा। राजगुरू को भी भगत सिंह के साथ फांसी दी गई थी। भारतीय इतिहास के पन्नों में उनका नाम भी शहीद के रूप में दर्ज है। राजगुरु से जुड़ी बहुत सारी ऐसी बातें हैं, जिसे कम ही लोग जानते होंगे।
क्या आपको पता है राजगुरु का पूरा नाम क्या था?
अगर नहीं पता है तो हम आपको बता देते हैं कि राजगुरु का पूरा नाम शिव राम हरि राजगुरू था। इस नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है. ऐसा कहा जाता है कि दरअसल राजगुरू का जन्म सावन महीने में सोमवार को हुआ था, इसलिए उनका नाम शिव के नाम पर रखा गया था। राजगुरू को मां का साथ बहुत कम दिनों का ही नसीब हुआ। महज 6 साल की उम्र में उनकी मां का निधन हो गया, जिसके बाद सारी जिम्मेदारी उनके बड़े भाई दिनकर पर आ गई। उसके बाद भी राजगुरू ने आजादी के आंदोलन में हिस्सेदार बनने के लिए कोई कोर कसर नही छोड़ी और सबकुछ छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। वह महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के चहेते बन गए।
अंग्रेजी भाषा सीखने को लेकर छोड़ दिया था घर
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि केवल अंग्रेजी भाषा सीखने को लेकर उनके भाई से उनका विवाद हो गया, जिसके बाद उन्होंने घर छोड़ दिया। राजगुरू जब तीसरी कक्षा में पढ़ते थे उनके भाषण से प्रभावित होकर लोकमान्य गंगाधर तिलक ने उन्हें माला पहनाई थी। शिवराम राजगुरू को संस्कृत के ग्रंथ पढ़ने में मन लगता था, जबकि उनके भाई चाहते थे कि वह अंग्रेजी भाषा सीखने पर जोर दें। जिस पर वह साफ कहते थे कि किसी भी कीमत पर वह अंग्रेजी हुकूमत के लिए काम नहीं करेंगे। राजगुरू के भाई दिनकर पुणे के राजस्व विभाग में नौकरी करते थे और वह भी चाहते थे कि राजगुरू भी पढ़ लिखकर नौकरी करें।
1924 में अंग्रेजी भाषा में कम नंबर आने पर उनके भाई ने उनसे अंग्रेजी में दो वाक्य बालने को कहा और ऐसा नहीं करने पर घर छोड़ने का आदेश दे दिया। जिसके बाद वह अपनी भाभी का आशीर्वाद लेकर घर से निकल गए. जहां से वह नासिक पहुंचे। इस दौरान उनकी मुलाकात आजाद और बाकी के क्रांतिकारियों से हुई. बाद में शिवराम राजगुरु को ब्रिटिश सरकार में असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन सॉन्डर्स की हत्या और असेंम्बली में बम फेंकने के मामले में भगत सिंह, सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को लाहौर की जेल में फांसी दे दी गई। उस समय उनकी उम्र महज 22 वर्ष थी।