नई दिल्ली (नेहा): केंद्र सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण में बड़े बदलाव की तैयारी में है। खबर है कि सरकार ‘क्रीमी लेयर’ आय मानदंड को विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकारी संगठनों, सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs), विश्वविद्यालयों और प्राइवेट सेक्टर में भी लागू करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इसका मकसद इन सभी क्षेत्रों में ‘समानता’ स्थापित करना है।
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इस मुद्दे पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता, शिक्षा, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT), विधि, श्रम व रोजगार, सार्वजनिक उपक्रम, नीति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के बीच कई दौर की बातचीत हुई है, जिसके बाद यह प्रस्ताव तैयार किया गया है।
1992 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (मंडल फैसला) में ओबीसी के भीतर ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा लागू हुई थी। 1993 में गैर-सरकारी कर्मचारियों के लिए सालाना आय सीमा 1 लाख रुपये तय की गई थी। हालांकि इसके बाद से इसमें कई बार बदलाव किया जा चुका है और 2017 में इसे बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दिया गया।
‘क्रीमी लेयर’ में आने वालों में संवैधानिक पदों पर बैठे लोग, ऑल इंडिया सर्विसेज के ग्रुप-A/क्लास-I और ग्रुप-B/क्लास-II अधिकारी, पीएसयू कर्मचारी, सशस्त्र बलों के अफसर, बड़े व्यापारी-उद्योगपति और संपत्ति या आय के आधार पर अमीर लोग शामिल होते हैं।
कुछ केंद्रीय पीएसयू में 2017 में ‘बराबरी’ तय की गई थी, लेकिन प्राइवेट सेक्टर, विश्वविद्यालयों और राज्यों के विभागों में यह अभी तक यह नहीं हुआ था। सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर की सैलरी लेवल-10 या उससे ऊपर होती है, जो सरकारी ग्रुप-A पदों के बराबर है। ऐसे में इन्हें ‘क्रीमी लेयर’ में लाने का प्रस्ताव है। इसका मतलब है कि इनके बच्चे ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं ले पाएंगे।
वहीं प्राइवेट सेक्टर में पद और सैलरी स्ट्रक्चर अलग-अलग होने के कारण ‘बराबरी’ तय करना मुश्किल है, इसलिए यहां आय/संपत्ति के आधार पर फैसला करने का सुझाव है।