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कौन बिछाता है समुद्र में इंटरनेट केबल?

Nri Rashtriya
Last updated: September 12, 2025 4:37 am
Nri Rashtriya
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नई दिल्ली (नेहा): घरों में बिजली कैसे आती है, इसका जवाब तो हर कोई जानता है, तार से। लेकिन आपके मोबाइल तक इंटरनेट कैसे आता है, आप कहेंगे टावर से। लेकिन टावर तक इंटरनेट कहां से पहुंचता है? जवाब है केबल से। हाल ही में भारत, पाकिस्तान और मिडिल ईस्ट में इंटरनेट प्रभावित हुआ था, क्योंकि लाल सागर से गुजरने वाली इंटरनेट के केबल्स बिगड़ गई थीं। बिगड़ गई थीं या बिगाड़ दी गई थीं, इसकी पुष्टि अभी नहीं हुई। ऐसा इसलिए, क्योंकि अक्सर यमन के हूती विद्रोही इन केबल्स के साथ छेड़छाड़ करते हैं। बहरहाल, चलिए, ये जान लेते हैं कि इन केबल्स को बिछाता कौन है और इनका मालिक कौन है?

लाल सागर से गुजरने वाली इंटरनेट केबल्स एशिया और यूरोप के देशों के लिए बेहद जरूरी हैं। टेलीजियोग्राफी के आंकड़े बताते हैं कि कई देशों का आधे से ज्यादा इंटरनेट बैंडविड्थ यूरोप तक लाल सागर की केबल्स के जरिए जाता है। यूरोप और एशिया के बीच 90% से ज्यादा इंटरनेट क्षमता इन्हीं केबल्स पर निर्भर करती है। यह बताता है कि ये केबल्स वैश्विक इंटरनेट के लिए कितनी अहम हैं। भारत का 95% से ज्यादा इंटरनेशनल डेटा इन्हीं केबल्स के जरिए जाता है। ये फाइबर-ऑप्टिक केबल्स हजारों किलोमीटर तक समुद्र के नीचे बिछी होती हैं। इन्हीं के कारण ई-मेल, वीडियो कॉल, ई-कॉमर्स, क्लाउड सर्विसेज, सोशल मीडिया सर्विसेज और अन्य ऑनलाइन सेवाएं चल पाती हैं। भारत में 17 अंतरराष्ट्रीय केबल्स 14 स्टेशनों पर आती हैं। ये स्टेशन जो मुंबई, चेन्नई, कोचीन, तूतीकोरिन और त्रिवेंद्रम में हैं।

इंटरनेट इन्हीं केबल्स और सैटेलाइट्स के दम पर काम करता है। कई बार ये केबल टूट जाती हैं, जिससे इंटरनेट इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनियां दूसरे तरीके भी अपनाती हैं, लेकिन उनके लिए सबसे सुगम तरीका केबल ही है। यही कारण है कि जब ये टूट भी जाती हैं, तब भी केबल्स को फिर से रिपेयर किया जाता है। कई बार तो हूती विद्रोही इन्हें जानबूझकर छेड़ते हैं, ताकि रिपेयर करने कोई शिप आए तो उससे फिरौती वसूली जाए। आंकड़े बताते हैं कि यमन के हूती विद्रोहियों ने 2023 के अंत से अब तक 100 से ज्यादा जहाजों पर हमला किया है। समुद्र के नीचे केबल्स बिछाने और उनकी देखभाल करने का काम बहुत टेढ़ा है।

यह काम किसी देश की सरकार नहीं, बल्कि निजी कंपनियां और इंटरनेशनल ग्रुप्स करते हैं। भारत में टाटा कम्युनिकेशंस, रिलायंस जियो, भारती एयरटेल, सिफी टेक्नोलॉजीज और बीएसएनएल जैसी कंपनियां इस काम में शामिल हैं। जबकि वर्ल्ड लेवल पर सबकॉम, अल्काटेल सबमरीन नेटवर्क्स और टीई सबकॉम जैसी कंपनियां विशेष जहाजों का इस्तेमाल करके इंटरनेट केबल्स बिछाती हैं। ये जहाज संवेदनशील इलाकों और गहरे समुद्र के खतरों से बचते हुए काम करते हैं।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि टाटा कम्युनिकेशंस के पास पांच केबल लैंडिंग स्टेशन हैं। तीन मुंबई में और एक-एक चेन्नई और कोचीन में हैं। ग्लोबल क्लाउड एक्सचेंज, जिसे पहले रिलायंस ग्लोबलकॉम नाम से जाना जाता था, इसके मुंबई में वर्सोवा और त्रिवेंद्रम में वॉर्फ केबल स्टेशन हैं। रिलायंस जियो के पास चेन्नई में बीबीजी स्टेशन और मुंबई में एएई-1 स्टेशन है। हालिया जानकारी के मुताबिक, रिलायंस जियो अपनी नई आईएएक्स और आईईएक्स केबल्स के लिए भी स्टेशन बना रहा है। सिफी टेक्नोलॉजीज मुंबई में मेना और जीबीआई केबल सिस्टम के लिए स्टेशन चलाता है। भारती एयरटेल के पास चेन्नई में दो और मुंबई में एक स्टेशन हैं। BSNL ने श्रीलंका के लिए अपनी पहली इंटरनेशनल केबल और चेन्नई-अंडमान निकोबार केबल सिस्टम बनाया है।

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