नई दिल्ली (नेहा): राजधानी में जलभराव की समस्या से निपटने के लिए पिछले कई दशकों से मास्टर प्लान की आवश्यकता थी। वर्तमान दिल्ली सरकार का यह अभूतपूर्व कदम है। लोगों की सहभागित, उन्नत बजट, राजनीतिक इच्छाशक्ति और तकनीक के साथ यदि संबंधित विभागों के साथ मिलकर धरातल पर क्रियान्वयन हो तो जलभराव से मुक्ति मिल सकती है। ये बातें दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व सदस्य आरएस नेगी ने दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में हुए विमर्श में कहीं। उन्होंने कहा कि दिल्ली के लिए 1976 में मास्टर प्लान बनाया गया था। उस समय भविष्य की कई चुनौतियों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। पिछले दस साल में तो इस समस्या को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया गया था। अब 58 हजार करोड़ के बजट के साथ ड्रेनेज जोन को तीन हिस्सों में बांटकर पीडब्ल्यूडी को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
उन्होंने कहा कि पहले जो सिस्टम तैयार किया गया था उसमें 25 एमएम प्रति घंटा की बारिश को ध्यान में रखा गया था, लेकिन अब 56 एमएम की बारिश में तेजी से सड़कों से पानी हटाने का सिस्टम तैयार किया जाएगा। राजधानी में 20 बड़े नाले हैं जो ड्रेनेज सिस्टम का आधार हैं। पीडब्ल्यूडी के पास दो हजार किमी के नाले हैं। वहीं, एमसीडी के पास 500 किलोमीटर के नाले हैं। इसके लिए पीडब्ल्यूडी, सिचाई विभाग व एमसीडी को एकीकृत होकर काम करना होगा। मास्टर प्लान में मानसून की अनिश्चितता को भी ध्यान में रखा गया है। उन्होंने बताया कि नए डिजायन में पुराने सिस्टम को भी जोड़ने की बात कही गई है।
आरएस नेगी ने कहा कि दिल्ली में जो बड़े नाले हैं वे छोटे-छोटे सैकड़ों नालों को पानी लेकर यमुना में गिराते हैं, अन्य कोई वाटर बाडी पानी के संग्रहण के लिए सक्रिय नहीं हैं। मानसून की सीजन में जब हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़ा जाता है तो यमुना का जलस्तर बढ़ जाता है। यमुना का जलस्तर 204 मीटर पर जाने पर नालों का पानी का बहाव कम होने लगता है। 206 मीटर या इससे ज्यादा जलस्तर होने पर नालों का मुहाना बंद हो जाता है पानी पूरी तरह वापस लौटने लगता है और पानी जमा होने लगता है। अनधिकृत कालोनियों व निचले इलाकों में एसे में बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। हालांकि ये स्थिति कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। लेकिन नए मास्टर प्लान से इस अवधि को और कम किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि राजधानी में प्लान के तहत बनी हाउसिंग सोसायटियों में नियम के मुताबिक वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं। दिल्ली जलबोर्ड द्वारा समय-समय पर इनका निरीक्षण भी किया जाता है। लेकिन असली परेशानी अनधिकृत कालोनियों में है। करीब दो हजार से अधिकर ऐसी कालोनियों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में अधिक बारिश होने पर अचानक नालों पर दबाव बढ़ जाता है। साथ ही इस समस्या के लिए नालों का अतिक्रमण भी जिम्मेदार है। कई नालों के आस-पास अतिक्रमण कर घर बना लिए गए हैं, जिससे बरसात के बाद कई घंटों तक पानी को निकलने की जगह नही मिलती है।