नई दिल्ली (नेहा): 5 सितंबर से राजस्थान के जोधपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की समन्वय समिति की तीन दिवसीय बैठक होने जा रही है। आरएसएस की ओर से जारी बयान में तो इसे हर साल होने वाली बैठक बताया है। लेकिन, आरएसएस-बीजेपी के बीच संबंधों में आए बदलाव के बाद इस बार इसकी अहमियत बढ़ गई है। 5 से 7 सितंबर तक संघ की इस बैठक में इसके तमाम बड़े पदाधिकारी और इसके अनेकों संगठनों से जुड़े लोग शामिल होंगे। आरएसएस की यह बैठक 2 अक्टूबर को इसकी स्थापना के सौ साल पूरे होने से ठीक एक महीने पहले आयोजित की जा रही है। संघ के लिए यह एक ऐसा दौर है, जिसमें बीजेपी के साथ इसकी ताल्लुकातों में अप्रत्याशित मोड़ आता नजर आ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 15 अगस्त पर आरएसएस की जिस तरह से सराहना की है, वैसा अभी तक कभी नहीं हुआ था। एक तरह से इस तरह के राष्ट्रीय कार्यक्रमों में संघ का जिक्र तक करने से परहेज करने की परंपरा सी बनी हुई थी। बीजेपी की सरकार ने भी कभी इसकी कोशिश नहीं की थी। यही नहीं, इसके तुरंत बाद ही पीएम मोदी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार तय किया, जो शुरू से आरएसएस से जुड़े रहे हैं। ऐसे मौके पर बीजेपी समेत संघ के तमाम संगठनों का जोधपुर में जुटना बहुत मायने रखता है।
आरएसएसके इस कार्यक्रम में इसके राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्य और कोऑर्डिनेटर पहुंचने वाले हैं। इसमें खुद आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले समेत सभी 6 सह सरकार्यवाह और अन्य प्रमुख पदाधिकारी हिस्सा लेंगे। इनके अलावा इस बैठक में बीजेपी समेत संघ से जुड़े 32 संगठनों के प्रतिनिधि भी मौजूद होंगे, जिनमें राष्ट्र सेविका समिति,विश्व हिंदू परिषद (VHP),अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP),वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय किसान संघ, विद्या भारती और भारतीय मजदूर संघ शामिल हैं।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इस बैठक में शिरकत करेंगे। इनके अलावा बीएल संतोष भी मौजूद रहेंगे, जो पार्टी के महासचिव (संगठन) हैं। यह पद बीजेपी में बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली रहा है, क्योंकि इसपर बैठा व्यक्ति पार्टी में संघ का प्रतिनिधि माना जाता है और दोनों ही संगठनों के बीच कड़ी की जिम्मेदारी निभाता है। इनके अलावा बीजेपी नेता सुनील बंसल, शिवप्रकाश, सौदान सिंह और वी सतीश की मौजूदगी से भी अंदाजा लग जाता है कि पार्टी के लिए आरएसएस की यह बैठक कितनी महत्वपूर्ण है। जेपी नड्डा का इस बैठक में मौजूद रहना और भी खास है।
नड्डा ने ही 2024 के लोकसभा चुनावों के वक्त ऐसा बयान दे दिया था, जिससे आरएसएस के स्वयंसेवकों को बहुत बड़ा झटका लगा था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर नड्डा ने अपने दम पर बीजेपी के सक्षम होने वाली बात नहीं कही होती तो बीजेपी को पूर्ण बहुमत के लिए टीडीपी और जेडीयू से सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। यही नहीं, बीजेपी अभी तक राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम भी नहीं तय कर पाई है। अटकलें हैं कि इसी बैठक के माध्यम से आरएसएस बीजेपी को नए पार्टी अध्यक्ष के लिए अपनी ओर से संकेत दे सकता है। बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने एनबीटी ऑनलाइन से कहा भी है कि पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम ‘दशहरे के बाद’ घोषित हो सकता है।
बीजेपी के लिए संघ की यह बैठक इसलिए भी अहम है, क्योंकि हाल ही में मोहन भागवत ने 75 साल की उम्र हो जाने पर सार्वजनिक जीवन छोड़ने और नए लोगों को मौका देने की बात कह चुके हैं। राजनीतिक जगत में अटकलें लगाई गई हैं कि यह पीएम मोदी के लिए इशारा हो सकता है, जो इस साल 17 सितंबर को 75 वर्ष के होने वाले हैं। खुद भागवत भी 75 साल पूरे कर रहे हैं और संघ की परंपरा के मुताबिक उन्हें भी अपने उत्तराधिकारी का नाम घोषित करना है। वैसे यह घोषणा आरएसएस के शताब्दी वर्ष पूरे होने से पहले होने की संभावना नहीं है।