नई दिल्ली (पायल): नाक की छोटी-सी समस्या को अक्सर हम नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह सामान्य ठंड या एलर्जी नहीं, बल्कि गंभीर स्वास्थ्य खतरे का शुरुआती संकेत भी हो सकता है। यदि नाक में लगातार बहाव, बंद होना, खून आना या अन्य असामान्य लक्षण दिखाई दें, तो इसे हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है। समय पर पहचान और इलाज नाक के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव में अहम भूमिका निभा सकता है।
नाक और साइनस का कैंसर तब विकसित होता है, जब नाक के अंदरूनी हिस्से या आसपास मौजूद साइनस की कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं। आमतौर पर यह कैंसर नाक के पीछे मौजूद उस खाली स्थान से शुरू होता है, जो मुंह की ऊपरी छत से होते हुए गले से जुड़ता है। साइनस दरअसल नाक के चारों ओर मौजूद हवा से भरी छोटी-छोटी जगहें होती हैं। यह बीमारी सिर और गर्दन से जुड़े कैंसरों की श्रेणी में आती है।
नाक के कैंसर का जोखिम कुछ खास परिस्थितियों में बढ़ जाता है। लंबे समय तक हानिकारक धूल या केमिकल्स के संपर्क में रहने वाले लोगों में इसका खतरा ज्यादा देखा गया है। जैसे- लकड़ी का बुरादा (कारपेंटरी का काम), कपड़ा उद्योग की धूल, चमड़े या आटे की धूल, निकेल और क्रोमियम जैसे धातुओं की धूल, सरसों गैस या रेडियम के संपर्क में आने वाले लोग। इसके अलावा धूम्रपान करने वाले, HPV संक्रमण से प्रभावित लोग, जिनके परिवार में पहले कैंसर का इतिहास रहा हो, गोरे रंग के लोग, पुरुष और 55 साल से अधिक उम्र के लोगों में इसका जोखिम अधिक माना जाता है।
इस कैंसर के लक्षण अक्सर नाक के केवल एक ही हिस्से में नजर आते हैं। इनमें लगातार नाक बंद रहना, आंखों के ऊपर या नीचे दर्द, नाक से बार-बार खून आना, नाक से पीप या बदबूदार पानी निकलना, चेहरे या दांतों में सुन्नपन, आंखों से लगातार पानी गिरना, नजर में बदलाव, कान में दर्द या दबाव महसूस होना और चेहरे, तालू या नाक के अंदर गांठ बनना शामिल हैं।
अगर लक्षणों के आधार पर डॉक्टर को नाक के कैंसर का संदेह होता है, तो मरीज को ईएनटी (ENT) विशेषज्ञ के पास भेजा जाता है। पुष्टि के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई, पीईटी स्कैन और बायोप्सी जैसी जांचें की जाती हैं।
नाक के कैंसर का इलाज उसकी स्टेज पर निर्भर करता है। आमतौर पर सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसे विकल्प अपनाए जाते हैं। पूरी तरह से इससे बचाव संभव नहीं है, लेकिन धूम्रपान छोड़ना, हानिकारक केमिकल्स और धूल से दूरी बनाना और किसी भी असामान्य लक्षण पर समय रहते डॉक्टर से सलाह लेना जोखिम को काफी हद तक कम कर सकता है।


