उत्तराखंड (पायल): देहरादून की इंडियन मिलिट्री अकादमी (आईएमए) में 525 नए कैडेटों को भारतीय सेना में कमीशन मिला है। इनमें से एक लेफ्टिनेंट सरताज सिंह को पाँच पीढ़ियों की सैन्य विरासत का सम्मान प्राप्त हुआ है। सरताज के अलावा दो अन्य भी हैं, जो उन परिवारों से आए हैं जिनकी चार पीढ़ियों ने सेना की वर्दी पहनी है।
इस पासिंग आउट परेड का रिव्यू आर्मी चीफ जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने किया। लेफ्टिनेंट सरताज सिंह को 20वीं जट्ट में कमीशन किया गया। उनके पिता ब्रिगेडियर उपिंदर पाल सिंह की भी यही यूनिट थी। लेफ्टिनेंट सरताज सिंह उस पीढ़ी से हैं जिनकी जड़ें 1897 से सेना में हैं। उनके पूर्वज सिपाही कृपाल सिंह ने 36 सिख रेजिमेंट के रूप में अफगान अभियान में भाग लिया था, जिन्होंने साहस और बलिदान के साथ सैन्य परंपरा को आगे बढ़ाया।
इस परंपरा को उनके परदादा, द्वितीय फील्ड रेजिमेंट के सूबेदार, अजमेर सिंह ने और मजबूत किया, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में बीर हकीम में लड़ाई लड़ी और वीरता के लिए ब्रिटिश भारत का दुर्लभ आदेश प्राप्त किया। उनके दादा ब्रिगेडियर हरवंत सिंह ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में बहादुरी की नई कहानियाँ लिखीं। उनके चाचा कर्नल हरविंदर पाल सिंह ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान सियाचिन में पारिवारिक परंपरा को जारी रखा।
भारतीय सैन्य अकादमी ने कहा कि यह कहानी सरताज की मां की ओर से भी उतनी ही प्रेरणादायक है, जिनके परिवार में कैप्टन हरभगत सिंह, कैप्टन गुरमेल सिंह (सेवानिवृत्त), कर्नल गुरसेवक सिंह (सेवानिवृत्त) और कर्नल इंदरजीत सिंह जैसे अधिकारियों ने प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, 1971 के युद्ध और उसके बाद भी यह वर्दी शानदार ढंग से पहनी। ऐसे माहौल में पले-बढ़े सरताज ने सेवा, अनुशासन और देशभक्ति को विचारों के रूप में नहीं बल्कि जीवन जीने के तरीके के रूप में अपनाया। इसलिए कमीशनिंग सिर्फ़ एक निजी मील का पत्थर नहीं है; यह वह पल है जब यह विरासत उसकी ज़िम्मेदारी बन जाती है। उसकी यात्रा युवाओं को याद दिलाती है कि सच्चा सम्मान केवल नाम के जरिए विरासत में नहीं मिलता, बल्कि यह पहले आए लोगों के नैतिक मूल्य और संघर्षों की कसौटी पर खरा उतरकर प्राप्त किया जाता है।


