नई दिल्ली (नेहा): सुप्रीम कोर्ट ने सेना की कानूनी शाखा जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) में पुरुष अधिकारियों की भर्ती के लिए बनी आरक्षण नीति को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कानूनी शाखा में पुरुष और महिलाओं की 2:1 आरक्षण नीति समानता के अधिकार का उल्लंघन है। यह प्रथा मनमानी है। आरक्षण नीति के तहत पुरुषों के लिए महिलाओं से अधिक पर आवंटित करना गलत है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा कि सेना अधिनियम 1950 की धारा 12 के तहत जारी अधिसूचना के माध्यम से महिलाओं को जेएजी शाखा में शामिल होने की अनुमति दी है। हमारा मानना है कि कार्यपालिका नीति या प्रशासनिक निर्देशों के माध्यम से भर्ती के नाम पर पुरुष अधिकारियों की संख्या को सीमित नहीं कर सकती है या उनके लिए आरक्षण नहीं कर सकती है। विवादित अधिसूचना में पुरुष उम्मीदवारों के लिए छह रिक्तियों के मुकाबले महिला उम्मीदवारों के लिए केवल तीन रिक्तियों का प्रावधान है। यह समानता के अधिकार के खिलाफ है। भर्ती के नाम पर पुरुष उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रावधान करती है। भर्ती की आड़ में इसकी अनुमति नहीं मिलेगी।
पीठ ने कहा कि लैंगिक तटस्थता का अर्थ है कि सभी योग्य उम्मीदवारों का चयन किया जाए, चाहे वह किसी भी लिंग के हों। पीठ ने सरकार और सेना को निर्देश दिया कि लिंग के आधार पर सीटें न बांटी जाएं। अगर सभी महिला उम्मीदवार योग्य हैं तो सभी का अध्ययन किया जाए और चयन किया जाए। जेएजी में एक सामान्य मेरिट सूची प्रकाशित की जाए और सभी उम्मीदवारों के अंक सार्वजनिक किए जाएं।
जेएजी प्रवेश योजना के 31वें कोर्स पर नियुक्ति के लिए दायर याचिका पर कोर्ट ने कहा कि महिलाओं का पिछली भर्ती में नामांकन नहीं हुआ है। अब सरकार महिला उम्मीदवारों की कम से कम 50 प्रतिशत रिक्तियां आवंटित करेगा। सुप्रीम कोर्ट में दो महिला उम्मीदवारों ने रिक्तियों में असमान आवंटन को चुनौती दी थी। दोनों ने कहा था कि उनके अंक पुरुष उम्मीदवाारों से अधिक थे, लेकिन महिला रिक्तियों की सीमित संख्या के कारण उनका चयन नहीं किया गया। अदालत ने निर्देश दिया कि एक याचिकाकर्ता को सेवा में शामिल किया जाए, जबकि दूसरी याचिकाकर्ता को राहत देने से इनकार कर दिया, जो याचिका के लंबित रहने के दौरान भारतीय नौसेना में शामिल हो गई थी।